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Saturday 16 December 2017

वो समंदर

वो समंदर भी
अब शांत हो रहा है
मुश्किलें दिन ब दिन
जो आम हो रहा है
कब तक चलता रहूँगा ख़ुद से ज़िरह करके
अब तो रहबेरे भी शमशान हो रहा है
कितनी दूरीयां नाप ली मैंने
फिर भी कस्ती पे अपना शाम हो रहा है
वो समंदर......
वो ज़ुनू वो दमख़्म
सब ख़ुद में लिप्ट के आसमान हो रहा है
अब तो पांव भी रुक कर सोना चाहता है
मग़र जान भी अपना परेशान हो रहा है
वो समंदर .....
         Traveling to Secunderabad
          22:16PM, Guntkal jn.

Friday 10 November 2017

तेरी गुमशुदगी भीड़ में भी
बिख़र जाती है
तेरी यादों की रौशनी मात्र से
मेरे चेहरे की खुशियां निखर आती है

Saturday 23 September 2017

ऐसा अब लगता है
भीड़ भी पुराना हो गया
जो कल तक सबसे क़रीब थे
अब वो अनजाना हो गया
बगैर उनके जो ढ़लती न थी शाम अपनी
वो ऐसे बेगाना हो गया

Thursday 21 September 2017

यूँ जो मैं
पिघल रहा हूँ
शरबतों सा घुल
रहा हूँ
दर्द के शहर में
गर्त -सा मिल रहा हूँ
यूँ जो

Wednesday 20 September 2017

इक तू ही तो है

है अज़नबी शहर
अज़नबी हवा मौसम भी ।
ज़िक्र तुम्हारी करके
कतरा कतरा करके ज़ख्मों पे नमक छिड़कते भी।
क्या कहूँ किसे कहूँ
इक तू ही तो था मेरा दर्द मेरा सुकूँ भी
खंडहर पथरीली राहबेरों में संवारना
इक तू ही तो था दोस्त भी ज़ुनू भी
तेरी गुमशुदगी मुझे रुलाती है
छुपा नही पता दर्द और तेरी रुसवाई भी

Tuesday 19 September 2017

कतरा कतरा में ख़ुदख़ुशी
का मज़ा ले रहा है
कैसे बताऊ तुझसे बिछड़ के ज़िन्दगी
किस कसमकस से गुज़र रहा है
तू होती है तो बात कुछ और होता है
अपनी ख़ामोशी में भी दिल शहर होता है

Monday 18 September 2017

तेरे ग़म अंदाज़ नया होता जा रहा है
तू पास नही अब काफ़ूर होता जा रहा है
माना कि मुश्किलें है लेकिन दर्द की कैसी कैफ़ियत
इक तो तू पास नही ,और ग़म से महरूफ़ किये जा रहे हो

Sunday 17 September 2017

आज जो क़ुदरती शाम थी
तुम पास न थे बस तेरी याद थी
मैं जानता हूँ मेरी कमी तुझे परेशां करती है
तुझमे तू न थी , मुझ में भी मेरी कमी थी
हर पल तेरे साथ होने को टटोलता हूँ
मग़र ख़ुद को सिरहाने की नमी पड़ी थी
आज जो

तू दूर रह के जो यूँ मुझसे ही मुझे पाने को लड़ते हो
मैं मानता हूँ तेरा भी मुक्कमल मैं हूँ
मेरी हर शाम हर शहर तुझसे है

Sunday 27 August 2017

इल्तज़ा बस इतनी सी है
इंतज़ार नहीं कर सकता
आंखों में यूँ उमड़ा है प्यार
इज़हार नहीं कर सकता
दुआ है ख़ुदा से बस इतनी
दूरी दे पर जुदाई बर्दाश्त नही कर सकता

Wednesday 2 August 2017

तू जो मेरी
आदत सी हो गई है
वग़ैर तेरे
जिंदगी आफ़त सी हो गई है
तेरे ही सासों से
मुझे राहत मिलती है
वो तेरी खुशबू कहाँ से लाऊँ
जो कहीं गुम सी हो गई है
तू जो मेरी .....

Wednesday 24 May 2017

तू ग़ैर की न थी
तो ग़ैर हो गई
तू दूर क्या गई
अपनी क़िस्मत भी बैर हो गई
मुक़म्मल जहाँ अपना होता
अब तो काश की ज़िंदगी शहर हो गई
क्या कहूँ तुझे या ख़ुदा को
जब अपने ही अपनों कि तोहमत हो गई
                   -Binodanderson
                     25th May17 (11:04)
                     Traveling to Delhi

Friday 19 May 2017

एहसास अभी बाक़ी है

हर दर्द का एहसास बाक़ी है
गुज़र गया है वक़्त निशां अभी बाक़ी है
धुँधले से वक़्त ऐसी चमक दिखाई
उड़ गया है हर रंग ,उनकी परछाई अभी बाक़ी है
हर दर्द

मज़बूत कर रहा है हर चोट मुझे
मेरी शख़्सियत का अक्स अभी बाक़ी है
मैं जानता हूँ तू न रुकेगा यू दर्द देने से
कभी मुफ़्लिशी में हूँ मग़र निकलना अभी बाक़ी है
हर दर्द

देख ली मंज़र कई मैंने भी मग़र
मेरी ज़िंदगी का कल आना अभी बाक़ी है
ज़िल्लतों में मैं नहीं मरूँगा याद रख
मेरी रंजो श्रम की सांस अभी बाक़ी है
हर दर्द...........
                -Binodanderson (20/05/17)
                 M Nagar  9:15AM

Thursday 11 May 2017

रहबेरों में यूं
रहगुज़र हुए है
मालूम नहीं
किधर शहर हुए है
जिधर ढूंढोगे नही मिलेंगे
न जाने कहाँ सिफ़र हुए है
मोहताज़ नही है जिंदगी किसी नाम की
बस वक़्त के दोपहर हुए है
वरना चाहते तो थे हम भी बहुत कुछ
गम की आंसू में हंसी सी महर हुए है
देखते और क्या क्या रंग दिखाती है जिंदगी
उजले लिबास में कूची सहर हुए है
      -Binodanderson
       Allahabad (11/05/17)

हर शहर
तेरा इंतज़ार
अब कब तक
देना पड़ेगा अपना करार
हर शहर
दिल भी हो रहा
अब बेकरार
अपनी आंखें भी
नही कर रही कोई सहर
सांसे लेना जिंदग़ी मत बना
मंज़िल को कर मुझे मेहर
यूँ गुफ़्तगू करके

Tuesday 9 May 2017

थोड़ा थोड़ा ज़िंदगी
जी रहे है
कहाँ ख्वाहिशें भी
रुक रुक के जी रहे है
दूर खड़ी होके
यूँ ही खीज़ रहे है
थोड़ा थोड़ा

अचानक ही कभी कभी
उम्मीद का सम्मा बांध रहे है
दर्द ज़ख्म को भुला के
फ़िर से पंखुड़िया अवतार ले रहा है
थोड़ा थोड़ा.....

Monday 8 May 2017

आज फिर दिल उदास है
कोई दस्तक़ देके रखा न पास है
उम्मीद का दामन थामे रखा है
फिर भी कुछ कमी रह गई जो न पास है

सांसों की डोर को
हर कदम बनाया विश्वास है
बिखरते रहे है उम्मीदों के जज़्बात
छोड़ नही सकता ,लड़ाई अपनी बहुत ख़ास है

फ़क्र है मुझें ख़ुद पे अपने दोस्तों पे 
शहर के रहबेरों में मेरे पास थे और हैं
ईक इनायत तू भी  करदे मौला
जिसकी मुझें अब तक प्यास  है
            -Binodanderson (8/5/17)
             18:36, M.nagar

Saturday 6 May 2017

ज़िन्दगी नूर से बेनूर है
सपने आपने आप मे अब भी चूर है
वक़्त की तोहमत तो देखिए
उम्र हो चुकी है फिर कुछ कर गुज़रने को मज़बूर है
                 -Binodanderson    

Thursday 4 May 2017

हर बार यूं करीब लाके
छोड़ता क्यूँ है
देखता हूँ इस बार इस साहिल से
मिलता क्या है ....

Wednesday 19 April 2017

कह दो की तुम
ग़लत नही है
मुफ़ीलीशि में जी लो
मग़र जिंदगी में कमी नही है
कह दो की .....

बुरा ही सही
कह दो कमी किसमे नही है

Sunday 16 April 2017

न जाने इतिहास का आँचल
क्या झेला है
न जाने कितने मासूम को
नर्क की आग में ठेला है
वो सुबह की इंतज़ार में
न जाने कितने जन्मों का बाकी मैला है
तुम आज फिर वही करने चले हो
जहाँ खून की नदियां दौड़ा हो
प्यार की जिगर नफ़रत फैला हो
कितनो की सुबह की शाम हुई
कितनो बेटी गुलाम हुई
कितनो की मांग श्मशान हुई
कितनो की ख़ाकी की शाम हुई
इन लाखों की खून से सलाम हुई
आज फिर वही हम करते है
तुम इंसानियत को भूल के
धर्म संस्कृति की बात करते हो
मुहब्बत जहाँ बस्ता था
सुबह तेरे घर की रोटी
शाम को मेरे घर रुख़सत सलाम हुई
आज दिलों में शाद नही
क्योंकि आपकी अपनी कोई आवाम नही
झुकते हो उनके आगे जो न कभी
आपके और हमारे काम हुई
नज़रों को इंसानियत से देखो
धर्म तो इनकी उपज़ बोटों की निशान हुई
याद करो तुम उनको भी (APJ)
जिनकी मंदिर से पहचान हुई
कोई धर्म कष्ट क्रोध नही सिखाता
प्यार ही सबका गुरु ज्ञान हुई
वक़्त रहते संभल जाओ
नहीं तो मुकमल अपनी मिट्टी भी खाम हुई
न जाने  
             -Binodanderson (1:58AM)
              17/04/17

Friday 14 April 2017

आज अखंडता की एकता
पे सवाल उठ रहे है
खाने खिलाने और मज़हब की छोड़ो
इश्क़ पे भी नकेल कस रहे है
संस्कृति और समाज के झूठे ठेकेदार
अपनी झूठी शान और प्रसार में
दूसरों पे अत्याचार कर रहे है
देखो ये दुनियां वालों होश में आओ
एक पहले ग़ुलाम थे अब ग़ुलामी की दीवार गढ़ रहे है
स्वतंत्रता तो अब भी क़िताबों में है
अब भी हम पास के करारों में रह रहे है
मत भूल आज हमारी बारी है कल आते देर नही
जब तुम भी हुक्मगारो के जुल्मों में तकरार कर रहे है

Wednesday 5 April 2017

न शान है न शौक़त है

न शान है न शौक़त है
झूठी ज़िंदगी की यही फ़ितरत है
किसकी हैसियत से कूदते हो
ये सच्ची नहीं झूठी मोहब्बत है
न शान है न ......

न दूसरी जिंदगी है न बाकी दौलत है
सब यही रह जायेगा फिर क्यूं इतनी तोहमत है
झूठी इज़्जत आबरू में
फिर क्यूं करते सबको गुमरत है
न शान है न ..........

तू बस अपनी ज़िंदगी जी
दूसरे में जीने की क्यूं आदत है
जो करना है जैसे करना है खुलके कर
आना है यहाँ दुबारा मत सोच,एक बार जीने की जो सोहरत है
न शान है न . .........

हर कोई यहाँ तेरा सलाहकार बनेगा
ख़ुद कहानीकार बन कलम तुम्हारा मेहनत है
न घबरा न डर किसकी बात न मानने में
अपनी जिंदग़ी का तू ही घोतक है
न शान है न ............
            -Binodanderson
              6th April 17 (2:05AM)

Sunday 26 March 2017

तेरे इंतज़ार में

तेरे इंतज़ार में
क्या से क्या हो गया हूँ
ख़ाली पिली सोच के
झूट मूठ में कितना मोटा हो गया हूँ
मज़बूरी कह लो या फिर तुम्हारी आदत
अपनी ही फ़ितरतो में यूँ घुल सा गया हूँ
तेरे इंतज़ार में .....

तू कितनी पास रहती है
फिर भी हर लम्हा गुफ़्तगू की तकलुफ हो गया हूँ
तू कितनी ही हिदायतें दे दो
तेरे एहसास का यूँ कायल हो गया हूँ
तेरे इंतज़ार में ............

हाँ मैं पागल हूँ
कोशिशों में ख़ुद को भूल सा गया हूँ
तेरे लिए ही
तेरे ही तस्वीर में तासीर हो गया हूँ
तेरे इंतज़ार में.............

न जाने ख़ुदा ने ऐसा क्यूँ बनाया
इतने काटों के बीच ही प्यार के फूल क्यूँ लगाया
एक जाती नहीं की
लाखों मुसिबतों से रु-आबरू हो गया हूँ
ऐसे रहबरों में राही बन गया हूँ
तेरे इंतज़ार में .......
               -Binodanderson
                28th March17

Tuesday 21 March 2017

मेरे हर दर्द से तकलीफ़ में तू
तेरे हर ग़म से मसरूफ़  मैं
मेरे हर हँसी के पीछे छुपी दास्ताँ जान लेती है तू
तेरी ख़ामोशी से  मगरुफ़ मैं

Monday 20 March 2017

न ख़ुद से मोहब्बत है

किसी से कोई शिकायत नहीं
न ख़ुद से मोहब्बत है
ज़िन्दगी का भी कोई ग़िला नहीं
चाहे आँकड़े की क्यूँ न क़िल्लत है

इनायत भी करके क्या मिला
दर्द देने की जो उनकी फ़ितरत है
नासाज़ ही अब मैं अच्छा हूँ
मंज़ूर मुझको मेरी क़िस्मत है
किसी से कोई शिकायत नहीं
न ख़ुद से मोहब्बत है ..

हर घाट पे दस्तक़ दी
उम्मीदों में जीने की जो आदत है
मन प्यासे प्याले सी कोशिश की
आपको मानने की जो सिद्दत है
किसी से कोई शिकायत नहीं
न ख़ुद से मोहब्बत है ...

अब तो पिघल जा बेपीर सा क्यूँ खड़ा है
पवन प्यारी हो रही  जो मेरी हिम्मत है
सूखे में सावन बन वर्षा जा
कुंठित स्वर की जो इनायत है
किसी से कोई शिकायत नहीं
न ख़ुद से मोहब्बत है .......
                - Binod Anderson 19:28
                   M nagar (20th March17)

Tuesday 14 March 2017

रंगों की जो कल बरसात हुई
आप की हमारी जो बात हुई
अरसों बीत गए फ़ागुन
लेकिन कल वाली feelings की न रात हुई।

मेरी कहानी तो बस तुमसे है
मोहब्बत की इरादतन जो साथ हुई

Tuesday 7 March 2017

हर दर्दे ज़ुबाँ की दास्तां अधूरी रह गई है
ख़ुदा की खुदाई भी ज़रूरी हो गई है
आज भी परेशान है दुनियां ख़ुद को बनाने में
लगता हो जैसे जीना ही कोई मज़बूरी हो गई है

सिले हुए लबों को आज़ाद करो

   
तुम ख़ामोश रहके न ख़ामोश रहो
सिले हुऐ लबों को आजाद करो
जिंदगी किसी हुकुमगरों की मोहताज़ नहीं
खुली प्रकृति में खुलके आगाज़ करो
सिले हुऐ लबों.......

मैं मानता हूँ बहुत तकलीफ़े आयेंगी
इन सब का न तुम परवाह करो
हर किसी में कहाँ है दम अपनी ही जिंदगी जीने का
हर वीर परवीर हिमालय सा निरन्तर प्रहार करो
सिले हुऐ लबों........

उठ रहा है तूफ़ान हर किसी ओर
डरो मत बस बिजली सा व्यवहार करो
जीत - हार की परवाह नहीं बस
अपनी शर्तों पे ख़ुद का न्याय करो
सिले हुए लबों ..........
             -Binodanderson
              1st March 17(8:39)

Monday 13 February 2017

ये मुझे क्या हो गया

ये मुझें क्या हो गया
धड़कने भी पराया सा लगे
पल भर की ये तेरी दुरी
कितना बुरा सा लगे
ये........

ख़ामोशी में दिल ये कहे
उसकी कमी से दिन क्यूँ ढला सा लगे
अश्क़ की आशिक़ी भी अजीब है
अपनी आँखों से निकले पर पराया सा लगे
ये.........

खुशियाँ तलाशने निकाला
पर ये गम तो अपना सा लगे
दूर खड़ी हो अंजान सा बन के
तुझें क्या पता ,अपनी जिंदगी ही पराया सा लगे
ये ...........

वक़्त की डोर भी कैसी है
छूटता हुआ पल कितना प्यारा सा लगे
आने वाला कल
कितना बेगाना सा लगे
ये मुझे.............
                 -Binodanderson
                  M.nagar, 21:00

Friday 3 February 2017

घबड़ा गई है ज़िंदगी
मेरे मय्यसर को देखके
न जाने कब खुलेगी तेरी आँखे
मेरे मुक्कदर को देख के

बस आँखें पत्थरा -सी गई है
घुटने नहीं टेके है मुसीबत को देख के
तू अपनी फ़ितरत से मशगूल रह
मैं लड़ता रहूँगा अपनी मेहनत को देखके

तू चूर कर सकता है मुझे, मज़बूर नहीं
इक दिन तू भी मानेगा ,हिम्मत को देखके
जल्द ही वो कसीदों की हसीं राते मेरी होंगी
फिर तू मुस्कुराएगा रंज के रौशन को देखके
           - Binodanderson
              3rd feb 17 (M.nagar)